अर्जुन व्रक्ष के गुण और ओशधिय प्रयोग
( benefits of Arjuna tree )-
अर्जुन व्रक्ष के गुण और ओशधिय प्रयोग ( arjuna vriksha ke
gun aur oshadhiya prayog)-
अर्जुन के व्रक्ष का आयुर्वेद मे अत्यधिक महत्व है ! इसे
कई बीमारियों मे उपयोग मे लिया जाता है ! ह्रदय के लिये तो ये टानिक है ! आयुर्वेद में
प्राचीन समय से हृदय रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
अर्जुन के व्रक्ष को अर्जुनाख्य, वीर, वीरवृक्ष,
धवल, ककुभ, नदीसर्ज, के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त वीर
योद्धा कुन्तीपुत्र, गांडीवधारी अर्जुन के सभी १२
नाम भी इस वृक्ष के हैं।
हिंदी में इसे कोह, कौह, अर्जुन
और लैटिन में टर्मिनेलिया अर्जुन कहते हैं।अर्जुन का वृक्ष आयुर्वेद में औषधि की तरह, पेड़ की छाल को चूर्ण, काढा, क्षीर पाक, अरिष्ट आदि की तरह लिया जाता है।
अर्जुन व्रक्ष की जानकारी-
अर्जुन का अर्थ होता है चांदी की तरह और इस
वृक्ष की छाल बाहर से चमकीली और सफ़ेद सी लगती है तथा यह ताकत देता है, और संभवतः इसलिए इसे अर्जुन नाम दिया गया है। यह एक बड़ा वृक्ष है। इसकी उंचाई 60-80 फुट हो सकती है।
इसका तना मोटा और शाखाएं फैली हुई होती हैं। इसके पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह देखने में होते हैं। वे 10-15 सेमी लम्बे 4-7 सेमी चौड़े और विपरीत क्रम में होते हैं। पत्ते ऊपर से चिकने और पिच्छे से खुरदरे होते हैं। इसके फल 1-2 इंच लम्बे होते हैं।
फलों में उभार होते हैं।
@ टर्मिनेलिया अर्जुन के संघटक-
अर्जुन की छाल में करीब 20-24% टैनिन पाया जाता है। छाल में बीटा सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड,
ट्राईहाइड्रोक्सी – ट्राईटरपीन मोनो
कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड, आदि भी पाए
जाते हैं। इसमें ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और
अर्जुनोलीन भी इसमें पाया जाता है। पेड़ की छाल में
पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनिशियम के साल्ट भी पाए जाते हैं। टैनिन फेनोलिक एसिड, इलेजिक एसिड एंड गेलिक एसिड ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और अर्जुनोलीन बीटा-सिटोस्टिरोल
अर्जुन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म-
@ अर्जुन के पेड़ की छाल को मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग
किया जाता है।
@ यह कषाय, शीतवीर्य, दर्द दूर
करने वाली, कफ, पित्त को कम करने वाली औषध है।
@ यह मेद को कम करती है।
@ यह हृदय के लिए अत्यंत हितकारी
है।
@ यह कान्तिजनक और बलदायक औषध है।
@ अर्जुन की छाल हृदय रोग, विषबाधा, रक्त विकार, कफ-
पित्त दोष, और बहुत भूख और प्यास लगने के रोग में प्रयोग की
जाती है।
@ स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और लघु है।
@ स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है। यह कटु रस औषधि
है।
@ यह कफ-पित्त रोगों में बहुत लाभप्रद होता है।
रस (taste on tongue): कषाय
गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
वीर्य (Potency): शीत
विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म:
हृदय : हृदय के लिए लाभकारी
रक्त्त स्तंभक, रक्तपित्त शामक, प्रमेहनाशक
कफहर पित्तहर विषहर
प्रभाव : हृदय के लिए टॉनिक
अर्जुन के औषधीय उपयोग -
वागभट्ट के ग्रंथों में इसके प्रयोगों
के बारे में विस्तार से लिखा गया है। उन्होंने कफ के कारण होने
वाले हृदय रोगों में इसके लाभ के बारे में बताया है। पित्तज हृदय
रोग में अर्जुन की छाल को दूध में पीने को कहा गया है।
बांगसेन के अनुसार, अर्जुन की छाल के चूर्ण और गेंहू के चूर्ण को
बराबर मात्रा में गाय के
दूध में उबाल कर लेना चाहिए!
@ यह उच्च रक्तचाप को कम
करती है।
@ इसका सेवन शरीर को शीतलता देता है। शरीर में
पित्त बढ़ा हुआ हो तो इसका सेवन करें।
@ छाल का सेवन शरीर को बल देता है।
@ अर्जुन की छाल, ज्वरनाशक, मूत्रल, और अतिसार
नष्ट करने वाली होती है।
@ जब चोट पर नील पड़ जाए तो इसकी
छाल का सेवन दूध के साथ करना चाहिए।
@ लीवर सिरोसिस में इसे टोनिक की तरह प्रयोग किया
जाता है।
@ मानसिक तनाव, दिल की अनियमित धड़कन, उच्च रक्चाप में
इसका सेवन लाभदायक है।
@ इसका काढ़ा बनाकर छाले, घाव, अल्सर, आदि धोते हैं।
@ कान के दर्द में इसके पत्तों का रस टपकाते हैं।
ब्लीडिंग डिसऑर्डर / रक्त पित्त तथा पुराने
बुखार में इसका सेवन लाभदायक है।
@ टूटी हड्डी bone fractures पर इसका लेप लगाने से लाभ
होता ह
@ मासिक में अधिक रक्स्राव हो रहा हो तो, अर्जुन की छाल
का एक चम्मच चूर्ण को एक कप दूध में उबालें। जब दूध आधा रह
जाए तो थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलकर, दिन में तीन बार
सेवन करें।
@ अर्जुन के छाल का काढ़ा पीने से पेशाब रोगों में लाभ
होता है। यह मूत्रल है।
@ शरीर में विष होने पर छाल का काढ़ा लाभप्रद है।
@ यह रक्त पित्त में बहुत उपयोगी है।
@ अर्जुन छाल के हृदय के लिए लाभ
@ यह सभी प्रकार के हृदय रोगों में फायदेमंद है।
@ यह अनियमित धड़कन, संकुचन को दूर करता है।
@ यह हृदय की सूजन को दूर करता है।
@ यह हृदय को ताकत देने वाली औषध है।
@ यह स्ट्रोक के खतरे को कम करता है।
@ यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
@ यह उच्च रक्तचाप को कम करता है।
@ यह लिपिड, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
@ इसका सेवन एनजाइना के दर्द को धीरे-धीरे कम
करता है।
@ यह दिल की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।
@ यह हृदय के ब्लॉकेज में लाभदायक है।
@ यह कार्डियोटॉनिक है।
@ हृदय रोगों में अर्जुनारिष्ट का सेवन या अर्जुन की छाल का
चूर्ण दिन में दो बार पानी या दूध के
साथ करना चाहिए।
अर्जुन की छाल का चूर्ण, cardiac diseases,
hypertension, heaviness in the chest में करना
चाहिए। यह cardio protective and cardio-tonic है।
@ अर्जुन की छाल को रात भर पानी में भिगो, सुबह मसलकर
छान कर पीते हैं। ऐसा एक महीने तक करने से उच्च रक्तचाप,
चमड़ी के रोग, यौन रोग, अस्थमा,पेचिश, मासिक में ज्यादा
खून जाना और पाचन में लाभ होता है!
@ यह वज़न को कम करता है।
@ यह ब्लड वेसल को फैला देता है।
@ यह रक्त प्रवाह के अवरोध को दूर करता है।
@ यह हृदय के अत्यंत लाभकारी है।
प्रमुख आयुर्वेदिक दवाएं
1. अर्जुनारिष्ट (इसे Parthadyarishta भी कहते हैं)
2. अर्जुन घृत Arjuna Ghrita
3. अर्जुन क्षीर पाक
4. ककुभादि चूर्ण
5. अर्जुन क्षीर पाक
6. अर्जुन घन सत्व
औषधीय मात्रा
1. छाल का काढ़ा: 50-100 ml
2. छाल का चूर्ण: 3-6 gram
3. क्षीर पाक में: 6-12 grams
4. घन सत्व : 30-60 बूंदे
@ आयुर्वेद में प्रमुख प्रयोग:
मोटे से मोटे का भी पेट १५-२० दिन में कम हो जाता है! इसे एक ग्लास पानी में मिलाएं त्वचा गोरी करने का एक बढ़िया रामबाण नुस्खा।
सावधानी-
@ अर्जुन आयुर्वेद की एक निरापद औषध है।
@ इसका प्रयोग किसी भी तरह के साइड-इफेक्ट पैदा
नहीं करता।
@ लम्बे समय तक इसका प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है।
@ यह टॉक्सिक नहीं है।
@ इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
::तो हमारी प्रक्रती ने हमे एसी ओशधियां दी है जिनका सेवन हमे कई बिमारियों से छूटकारा तो दिलाता है ! साथ ही इनके कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नही पड़ते !
सेक्स पावर बढाने की अन्य अयुर्वेदिक प्रभावशाली ओशधिया
-
@ "मदन प्रकाश चुरन"
@ "सुखदर्शन वटी"
@ "नरसिह्न चुरन"
@ "वीर्य स्तम्भन वटी
@ "कौचापाक"
@ "चवनप्राशवलेह"
@@@@@@@@
ये ओशधिया कामोत्तेजना बढाने मे बहुत ही लाभदायक
महिलाओ के गुप्त रोगो की जानकारी और उनके
आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खो की जानकारी ,
बाल संबंधी समस्याओं ,त्वचा संबंधी समस्याओं,मोटापा,
सेक्स संबंधी और लिंग की कमजोरी आदि की जानकारी के
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( benefits of Arjuna tree )-
अर्जुन व्रक्ष के गुण और ओशधिय प्रयोग ( arjuna vriksha ke
gun aur oshadhiya prayog)-
अर्जुन के व्रक्ष का आयुर्वेद मे अत्यधिक महत्व है ! इसे
कई बीमारियों मे उपयोग मे लिया जाता है ! ह्रदय के लिये तो ये टानिक है ! आयुर्वेद में
प्राचीन समय से हृदय रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
अर्जुन के व्रक्ष को अर्जुनाख्य, वीर, वीरवृक्ष,
धवल, ककुभ, नदीसर्ज, के नाम से भी जाना जाता है। इसके अतिरिक्त वीर
योद्धा कुन्तीपुत्र, गांडीवधारी अर्जुन के सभी १२
नाम भी इस वृक्ष के हैं।
हिंदी में इसे कोह, कौह, अर्जुन
और लैटिन में टर्मिनेलिया अर्जुन कहते हैं।अर्जुन का वृक्ष आयुर्वेद में औषधि की तरह, पेड़ की छाल को चूर्ण, काढा, क्षीर पाक, अरिष्ट आदि की तरह लिया जाता है।
अर्जुन व्रक्ष की जानकारी-
अर्जुन का अर्थ होता है चांदी की तरह और इस
वृक्ष की छाल बाहर से चमकीली और सफ़ेद सी लगती है तथा यह ताकत देता है, और संभवतः इसलिए इसे अर्जुन नाम दिया गया है। यह एक बड़ा वृक्ष है। इसकी उंचाई 60-80 फुट हो सकती है।
इसका तना मोटा और शाखाएं फैली हुई होती हैं। इसके पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह देखने में होते हैं। वे 10-15 सेमी लम्बे 4-7 सेमी चौड़े और विपरीत क्रम में होते हैं। पत्ते ऊपर से चिकने और पिच्छे से खुरदरे होते हैं। इसके फल 1-2 इंच लम्बे होते हैं।
फलों में उभार होते हैं।
@ टर्मिनेलिया अर्जुन के संघटक-
अर्जुन की छाल में करीब 20-24% टैनिन पाया जाता है। छाल में बीटा सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड,
ट्राईहाइड्रोक्सी – ट्राईटरपीन मोनो
कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड, आदि भी पाए
जाते हैं। इसमें ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और
अर्जुनोलीन भी इसमें पाया जाता है। पेड़ की छाल में
पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनिशियम के साल्ट भी पाए जाते हैं। टैनिन फेनोलिक एसिड, इलेजिक एसिड एंड गेलिक एसिड ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और अर्जुनोलीन बीटा-सिटोस्टिरोल
अर्जुन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म-
@ अर्जुन के पेड़ की छाल को मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग
किया जाता है।
@ यह कषाय, शीतवीर्य, दर्द दूर
करने वाली, कफ, पित्त को कम करने वाली औषध है।
@ यह मेद को कम करती है।
@ यह हृदय के लिए अत्यंत हितकारी
है।
@ यह कान्तिजनक और बलदायक औषध है।
@ अर्जुन की छाल हृदय रोग, विषबाधा, रक्त विकार, कफ-
पित्त दोष, और बहुत भूख और प्यास लगने के रोग में प्रयोग की
जाती है।
@ स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और लघु है।
@ स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है। यह कटु रस औषधि
है।
@ यह कफ-पित्त रोगों में बहुत लाभप्रद होता है।
रस (taste on tongue): कषाय
गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
वीर्य (Potency): शीत
विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म:
हृदय : हृदय के लिए लाभकारी
रक्त्त स्तंभक, रक्तपित्त शामक, प्रमेहनाशक
कफहर पित्तहर विषहर
प्रभाव : हृदय के लिए टॉनिक
अर्जुन के औषधीय उपयोग -
वागभट्ट के ग्रंथों में इसके प्रयोगों
के बारे में विस्तार से लिखा गया है। उन्होंने कफ के कारण होने
वाले हृदय रोगों में इसके लाभ के बारे में बताया है। पित्तज हृदय
रोग में अर्जुन की छाल को दूध में पीने को कहा गया है।
बांगसेन के अनुसार, अर्जुन की छाल के चूर्ण और गेंहू के चूर्ण को
बराबर मात्रा में गाय के
दूध में उबाल कर लेना चाहिए!
@ यह उच्च रक्तचाप को कम
करती है।
@ इसका सेवन शरीर को शीतलता देता है। शरीर में
पित्त बढ़ा हुआ हो तो इसका सेवन करें।
@ छाल का सेवन शरीर को बल देता है।
@ अर्जुन की छाल, ज्वरनाशक, मूत्रल, और अतिसार
नष्ट करने वाली होती है।
@ जब चोट पर नील पड़ जाए तो इसकी
छाल का सेवन दूध के साथ करना चाहिए।
@ लीवर सिरोसिस में इसे टोनिक की तरह प्रयोग किया
जाता है।
@ मानसिक तनाव, दिल की अनियमित धड़कन, उच्च रक्चाप में
इसका सेवन लाभदायक है।
@ इसका काढ़ा बनाकर छाले, घाव, अल्सर, आदि धोते हैं।
@ कान के दर्द में इसके पत्तों का रस टपकाते हैं।
ब्लीडिंग डिसऑर्डर / रक्त पित्त तथा पुराने
बुखार में इसका सेवन लाभदायक है।
@ टूटी हड्डी bone fractures पर इसका लेप लगाने से लाभ
होता ह
@ मासिक में अधिक रक्स्राव हो रहा हो तो, अर्जुन की छाल
का एक चम्मच चूर्ण को एक कप दूध में उबालें। जब दूध आधा रह
जाए तो थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलकर, दिन में तीन बार
सेवन करें।
@ अर्जुन के छाल का काढ़ा पीने से पेशाब रोगों में लाभ
होता है। यह मूत्रल है।
@ शरीर में विष होने पर छाल का काढ़ा लाभप्रद है।
@ यह रक्त पित्त में बहुत उपयोगी है।
@ अर्जुन छाल के हृदय के लिए लाभ
@ यह सभी प्रकार के हृदय रोगों में फायदेमंद है।
@ यह अनियमित धड़कन, संकुचन को दूर करता है।
@ यह हृदय की सूजन को दूर करता है।
@ यह हृदय को ताकत देने वाली औषध है।
@ यह स्ट्रोक के खतरे को कम करता है।
@ यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
@ यह उच्च रक्तचाप को कम करता है।
@ यह लिपिड, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
@ इसका सेवन एनजाइना के दर्द को धीरे-धीरे कम
करता है।
@ यह दिल की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।
@ यह हृदय के ब्लॉकेज में लाभदायक है।
@ यह कार्डियोटॉनिक है।
@ हृदय रोगों में अर्जुनारिष्ट का सेवन या अर्जुन की छाल का
चूर्ण दिन में दो बार पानी या दूध के
साथ करना चाहिए।
अर्जुन की छाल का चूर्ण, cardiac diseases,
hypertension, heaviness in the chest में करना
चाहिए। यह cardio protective and cardio-tonic है।
@ अर्जुन की छाल को रात भर पानी में भिगो, सुबह मसलकर
छान कर पीते हैं। ऐसा एक महीने तक करने से उच्च रक्तचाप,
चमड़ी के रोग, यौन रोग, अस्थमा,पेचिश, मासिक में ज्यादा
खून जाना और पाचन में लाभ होता है!
@ यह वज़न को कम करता है।
@ यह ब्लड वेसल को फैला देता है।
@ यह रक्त प्रवाह के अवरोध को दूर करता है।
@ यह हृदय के अत्यंत लाभकारी है।
प्रमुख आयुर्वेदिक दवाएं
1. अर्जुनारिष्ट (इसे Parthadyarishta भी कहते हैं)
2. अर्जुन घृत Arjuna Ghrita
3. अर्जुन क्षीर पाक
4. ककुभादि चूर्ण
5. अर्जुन क्षीर पाक
6. अर्जुन घन सत्व
औषधीय मात्रा
1. छाल का काढ़ा: 50-100 ml
2. छाल का चूर्ण: 3-6 gram
3. क्षीर पाक में: 6-12 grams
4. घन सत्व : 30-60 बूंदे
@ आयुर्वेद में प्रमुख प्रयोग:
मोटे से मोटे का भी पेट १५-२० दिन में कम हो जाता है! इसे एक ग्लास पानी में मिलाएं त्वचा गोरी करने का एक बढ़िया रामबाण नुस्खा।
सावधानी-
@ अर्जुन आयुर्वेद की एक निरापद औषध है।
@ इसका प्रयोग किसी भी तरह के साइड-इफेक्ट पैदा
नहीं करता।
@ लम्बे समय तक इसका प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है।
@ यह टॉक्सिक नहीं है।
@ इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।
::तो हमारी प्रक्रती ने हमे एसी ओशधियां दी है जिनका सेवन हमे कई बिमारियों से छूटकारा तो दिलाता है ! साथ ही इनके कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नही पड़ते !
सेक्स पावर बढाने की अन्य अयुर्वेदिक प्रभावशाली ओशधिया
-
@ "मदन प्रकाश चुरन"
@ "सुखदर्शन वटी"
@ "नरसिह्न चुरन"
@ "वीर्य स्तम्भन वटी
@ "कौचापाक"
@ "चवनप्राशवलेह"
@@@@@@@@
ये ओशधिया कामोत्तेजना बढाने मे बहुत ही लाभदायक
Not-
किसी भी ओषधि के सेवन से पूर्व किसी वैद या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। सभी मनुष्य की शारीरिक प्रकृति अलग अलग होती है। और औषधि मनुष्य की प्रकृति के अनुसार दी जाती है यह वेबसाइट किसी को भी बिना सही जानकारी के औषधि सेवन की सलाह नही देती अतः बिना किसी वैद की सलाह के किसी भी दावाई का सेवन ना करें।
किसी भी ओषधि के सेवन से पूर्व किसी वैद या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। सभी मनुष्य की शारीरिक प्रकृति अलग अलग होती है। और औषधि मनुष्य की प्रकृति के अनुसार दी जाती है यह वेबसाइट किसी को भी बिना सही जानकारी के औषधि सेवन की सलाह नही देती अतः बिना किसी वैद की सलाह के किसी भी दावाई का सेवन ना करें।
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